सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा
मेरे मन-प्रांगण का पौधा, पानी बिन तरसा...।
मरक रही है रौनक सारी
ढरक रहीं हैं अखियां कारी
सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा ।।
हरियाली की दशा विकट है
पीलापन आ खड़ा निकट है
सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा ।।
सत-साधन निस्फलित हो रहा
सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा ।।
पर धरती से प्ररित हूं मैं
अंबर से उत्प्रेरित हूं मैं
सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा ।।
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