साहित्य
सोमवार, 23 अप्रैल 2012
वह
उनका कचरा
उसकी रोटी
दिनभर चुनती
रात को सोती
ऐसी है व्यवस्था
या किस्मत ही फूटी
सोच-सोच के वह है रोती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें