शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

बैरी सावन



सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा
मेरे मन-प्रांगण का पौधा, पानी बिन तरसा...।


मरक रही है रौनक सारी
ढरक रहीं हैं अखियां कारी

सिसक रहा मौसम मिजाज का, बैरी मन हुलसा...।
सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा ।।

हरियाली की दशा विकट है
पीलापन खड़ा निकट है

भाव-क्षितिज पर स्वच्छ चांदनी, ओढ़ रही आशा...।
सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा ।।

धीर-शैल स्खलित हो रहा
सत-साधन निस्फलित हो रहा

कैसा यह मौसम आया है, मेरा तन झूलसा...।
सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा ।।


पर धरती से प्ररित हूं मैं
अंबर से उत्प्रेरित हूं मैं

धूप, घाम या क्षोभ-सर लगे, जीना है अरसा...।
सावन अबकी सबके आंगन, झूम-झूम बरसा ।।